कार-ए-अफ़्ज़ाइश-ए-अनवार-ए-सहर किस ने किया सिर्फ़ आफ़ाक़ मिरा रख़्त-ए-सफ़र किस ने किया बे-हुनर तुझ से मिरा इज्ज़-ए-हुनर पूछता है मुझ को मातूब सर-ए-शहर-ए-हुनर किस ने किया दहर-ए-फ़ानी में फ़क़त अहल-ए-क़नाअत के सिवा ज़िंदगी तुझ को बहर-हाल बसर किस ने किया ऐ मिरे जज़्ब-ए-अना तेरी बक़ा की ख़ातिर अपनी तकमील से इस तौर हज़र किस ने किया तू कि इक ज़र्रा-ए-नाचीज़ था ऐ हुस्न-मआब तुझ को हम-पाया-ए-ख़ुर्शीद-ओ-क़मर किस ने किया आज भी दंग है रफ़्तार-ए-ज़माना इस पर एक पल में कई क़रनों का सफ़र किस ने किया सोचता हूँ फ़क़त इस दौर के इंसाँ के लिए हसरत-ओ-यास के मौसम को अमर किस ने किया महव-ए-हैरत है तहय्युर भी जहाँ पर 'ताबिश' ऐसे बे-आब-ओ-गियह दश्त को घर किस ने किया