करें हैं नौहा अबस देख दोस्ताँ तन्हा अदम से आए थे तन्हा चले वहाँ तन्हा नसीम-ए-सुब्ह है लग चलने में हर एक यहाँ निकलिए घर से न जूँ मेहर मेहरबाँ तन्हा किया है शौक़ ने परवाना शम्अ'-ए-ऐमन का तलब में उस की हूँ शब-गर्द जाँ-फ़िशाँ तन्हा निकलती काश न बैज़े से अंदलीब अपने हुई असीर-ए-क़फ़स भी तो आह याँ तन्हा हमें तो अक्स भी अपना नज़र नहीं आता वो तीरा-बख़्त हैं हम ज़ेर-ए-आसमाँ तन्हा ग़ुबार हो के मिरा गर्द-ओ-बाद किस के लिए फिरे है दश्त में हर-सू दवाँ-दवाँ तन्हा वो अपने साए के होते हिजाब करता है ख़त उस को दीजियो क़ासिद मिले जहाँ तन्हा हमें भी ज़ेर-ए-फ़लक अपनी जान भारी है हबाब ही नहीं हस्ती से सरगिराँ तन्हा फिरें हैं बाल-फ़िशाँ बुलबुलों के झुण्ड के झुण्ड भली लगे है किसे सैर-ए-बोस्ताँ तन्हा सबा मिले कहीं गर क़ाफ़िला तो कीजो ख़बर भटक-भटक कोई रोए है कर फ़ुग़ाँ तन्हा नहीं शरीक बुरे वक़्त का किसी के कोई पड़ा कराहे है रातों ये ना-तवाँ तन्हा हुआ नसीब ये सहरा-ए-बेकसी ऐ वाए फ़लक ने ला मुझे वारिद किया कहाँ तन्हा निकल गया तिरे हाथों कहाँ है याँ 'फ़िद्वी' वो होवेगा किसी जंगल में ख़स्ता-जाँ तन्हा