काश ऐसा हो कि वो हम को मनाने आए अब भी उल्फ़त है उसे हम से बताने आए जो सुनाता था सभी वस्ल के क़िस्से हम को अब वो इक हिज्र का क़िस्सा भी सुनाने आए भर गए ज़ख़्म मिरे दिल के पुराने सारे उस से कह दो कि नए ज़ख़्म लगाने आए हो गए सर्द जो ये हिज्र के मारे जज़्बे ऐसे जज़्बात को फिर आग लगाने आए हम भी मानेंगे कि वा'दों का बड़ा सच्चा है हम से इक वा'दा किया था वो निभाने आए साथ बैठे हैं ये अब हाथ में साग़र थामे शैख़ साहब थे नशा हम से छुड़ाने आए तेरी यादों में था खोया कि मिरी आँख लगी मुझ को फिर रात गए ख़्वाब सुहाने आए आज इक साँप सर-ए-राह गुज़रते देखा 'शान' कुछ दोस्त मुझे याद पुराने आए