काश वो शोख़ मिरे दिल में मकीं हो जाए मेरी उजड़ी हुई दुनिया भी हसीं हो जाए मेरे सज्दों को ये ए'जाज़ अता कर या-रब नक़्श-ए-पा उन का मिरा नक़्श-ए-जबीं हो जाए तेरे इंकार में भी होता है इक़रार का लुत्फ़ हाँ न कहने की जो ज़िद है तो नहीं हो जाए महफ़िल-ए-पीर-ए-मुग़ाँ हो कि हो बज़्म-ए-जानाँ दिल को बर्बाद ही होना है कहीं हो जाए हश्र में वो भी मिरे सामने होंगे या-रब फ़ैसला अपना तो बेहतर है यहीं हो जाए मो'जिज़े करता है ऐ 'सेहर' मिरा हुस्न-ए-नज़र इक नज़र डाल दूँ जिस शय पे हसीं हो जाए