ख़ुशियों को ढूँडने जो कभी हम निकल पड़े ग़म जितने आस-पास थे सब साथ चल पड़े इक सर्द आह ने मिरी ऐसा असर किया उस बुत के दिल में रहम के चश्मे उबल पड़े सिक्का था बज़्म-ए-दहर में जिन का कभी रवाँ बे-नंग-ओ-नाम होंगे कहीं आज-कल पड़े इंसाँ तो हे वही जो बदल दे हवा का रुख़ इंसाँ वो क्या जो साथ हवाओं के चल पड़े सहवन जो हम से ज़िक्र-ए-वफ़ा हो गया कभी उन की जबीन-ए-नाज़ पे क्या क्या न बल पड़े ये बाँकपन ये हुस्न ये मस्ती भरी अदा ख़ुद तू भी देख ले तो तिरा दिल मचल पड़े अपना कहा था हँस के मुझे उस ने एक बार अब दिन को चैन आए न शब ही को कल पड़े दिल है वही जो रखता हो ताब-ए-जमाल-ए-तूर वो क्या जो एक जुगनू की लौ पर मचल पड़े तड़पा था जिस ख़ुशी के लिए 'सेहर' उम्र भर जब वो ख़ुशी मिली मिरे आँसू निकल पड़े