कसरत-ए-वहदानियत में हुस्न की तनवीर देख दीदा-ए-हक़-बीं से रंग-ए-आलम-ए-तस्वीर देख इस क़दर खिंचना नहीं अच्छा बुत-ए-बे-पीर देख प्यार की नज़रों से सू-ए-आशिक़-ए-दिल-गीर देख ग़ैर ने मुझ पर सितम ढाए हैं ढाले आज तू रह न जाए कोई भी तरकश में बाक़ी तीर देख काम बन बन कर बिगड़ जाते हैं लाखों रात दिन किस क़दर है मुझ से बरगश्ता मिरी तक़दीर देख फिर न ये कहना कि ख़त लिक्खा है किस ने ग़ैर को ले ये है मौजूद तेरे हाथ की तहरीर देख हारना हिम्मत दलील-ए-कामयाबी से है दूर काम ले तदबीर से फिर ख़ूबी-ए-तक़दीर देख गुम्बद-ए-गर्दूं सँभल ऐ गुम्बद-ए-गर्दूं सँभल कर न दे सद पाश तीर-ए-आह पर तासीर देख चार दिन की ज़िंदगी पर मुश्त-ए-ख़ाक इतना ग़ुरूर पीस देगा एक दिन ये आसमान-ए-पीर देख बे-बुलाए तो नहीं आया तिरी महफ़िल में 'नाज़' देख हाँ हाँ देख अपने हाथ की तहरीर देख