सर पर कोई आसमान रख दे इक मुँह में मगर ज़बान रख दे आ सुल्ह नहीं सलाम तो ले ये तीर चढ़ी कमान रख दे इतना भी न बे-लिहाज़ हो जा थोड़ा सा तो ख़ुश-गुमान रख दे तुझ को तिरी हिकमतें मुबारक इक हाथ पे इक जहान रख दे फिर हम को गदा-ए-रह बना कर रह में कोई इम्तिहान रख दे तफ़्सील कहीं गराँ न पड़ जाए इक हर्फ़ में दास्तान रख दे अब ध्यान की बात छिड़ गई तो कुछ इस से अलग भी ध्यान रख दे