कटे दिन सुन कई मौसम महीने तुझे जी में बहुत ढूँडा है जी ने छुआ फूलों ने झुक कर उस का चेहरा भिगोए होंट शबनम की नमी ने अभी बर्छी के फल रुड़कें बदन में अभी सड़कन भरे ये सर ये सीने पढ़ें रग-वेद की पाकीज़ा हम्दें पिए निरवान जल के आबगीने बताई रात की सब बात आख़िर कहीं का भी नहीं छोड़ा किसी ने सखी आ चाँद की जानिब फलांगें कटहरे रंग के किरनों के ज़ीने जुदाई का तभी मफ़्हूम समझा लगे जब छूटने दिल के पसीने ये गानी ले के आएँ उस की मय्या ये अँगूठी मुझे भेजी है पी ने सखी के दाँत मोती जगती जोती सखी के नैन तरशीदा नगीने चटक बोसा तने केरे में हम तुम दिखाए हाए क्या मंज़र मुरी ने