कटी है उम्र हमारी बड़े अज़ाब के साथ तुम्हारी याद के आँसू पिए शराब के साथ जो आसमान से उतरी है रहबरी के लिए वफ़ाएँ की हैं कभी तुम ने उस किताब के साथ इसी लिए तो जवानी में सर झुका कि तेरा शबाब-ए-हुस्न भी शामिल रहे सवाब के साथ चमकने वाली किसी शय का ए'तिबार नहीं दिया तो हम भी जलाते हैं माहताब के साथ हमारी आँख के पर्दे भी बा-हया होंगे नज़र उठे तो नज़र आएँ सब हिजाब के साथ बनी है जश्न-ए-बहाराँ में क़त्ल-ए-गुल की फ़ज़ा हमें भी रहना पड़ेगा बड़े हिसाब के साथ