क़ातिल को तेग़-ए-नाज़ पे है नाज़ देखना दामन उठा के चलने का अंदाज़ देखना रश्क-ए-रक़ीब का तो गुमाँ भी न कीजिए मरता हूँ इस लिए कि है ए'जाज़ देखना तुम और अपने वा'दे पे आ जाओ शाम से क्या बात बन पड़ी है ख़ुदा-साज़ देखना है ख़ून-ए-दिल अभी सर-ए-मिज़्गाँ जमा हुआ उन की तरफ़ न दीदा-ए-ग़म्माज़ देखना फ़स्ल-ए-बहार आते ही मुतरिब बनी सबा छेड़ा शमीम-ए-गुल ने नया साज़ देखना आईना सामने न सही आरसी तो है तुम अपने मुस्कुराने का अंदाज़ देखना बाज़ू हैं वा क़फ़स में तड़पता हूँ रात-दिन किस से कहूँ कि हसरत-ए-परवाज़ देखना यूँ देखने के वास्ते लाखों हसीन हैं किस को हुआ नसीब ये अंदाज़ देखना ग़ुस्सा में आँख भी नहीं मिलती किसी से आज किस पर गिरे निगाह का शहबाज़ देखना हर लब पे गुदगुदी का असर देखता हूँ मैं महफ़िल में उन की शोख़ी-ए-आवाज़ देखना क़ाइल बनी नज़ाकत-ए-आवाज़ देखना लिखे हैं शेर हज़रत-ए-'बेख़ुद' के रंग में ऐ अहल-ए-बज़्म 'शाद' का ए'जाज़ देखना