क़तरा क़तरा मिटाता हूँ By Ghazal << अकेली रात थी चारों तरफ़ अ... निगाह-ए-शौक़ में ख़्वाबों... >> क़तरा क़तरा मिटाता हूँ तब इक क़तरा लिखता हूँ मुझ जैसा क्यों देखूँ मैं जब ख़ुद जैसा दिखता हूँ मीठे बोल सुना ले जा मोल नहीं मैं बिकता हूँ तन तो मेरा भी है पर मैं इस में कब टिकता हूँ मैं फ़ाक़ों के चूल्हे में इक रोटी सा सिकता हूँ Share on: