कौन आ गया ये हश्र का सामाँ लिए हुए दामन में अपने मेरा गरेबाँ लिए हुए हर एक ग़म है ऐश का उनवाँ लिए हुए शाम-ए-ख़िज़ाँ है सुब्ह-ए-बहाराँ लिए हुए सज्दा है मेरा ज़ौक़-ए-फ़रावाँ लिए हुए उठेगा अब तो सर दर-ए-जानाँ लिए हुए बा'द-ए-रिहाई भी न मैं ज़िंदाँ से जाऊँगा बैठा रहूँगा इज़्ज़त-ए-ज़िंदाँ लिए हुए अब भी न ख़ंदा-लब हों मिरे ज़ख़्म-हा-ए-दिल वो मुस्कुरा रहे हैं नमक-दाँ लिए हुए ऐ चारा-साज़ बैठ ये चारागरी भी देख उट्ठेगा मेरा दर्द ही दरमाँ लिए हुए रंगीनी-ए-तबस्सुम-ए-पैहम न पूछिए जैसे वो आ रहे हों गुलिस्ताँ लिए हुए ऐसा भी काश आए मोहब्बत में इंक़लाब वो आएँ मेरी दीद का अरमाँ लिए हुए कैसी बहार आई है अब के ब-रंग-ए-नौ हर एक गुल है ख़ून-ए-शहीदाँ लिए हुए इम्कान-ए-सहव हम से भी मुमकिन है ऐ 'शिफ़ा' इंसानियत का हम भी हैं इम्काँ लिए हुए