कौन देगा तिरे कूचे में सदा मेरे बा'द सर को पटख़ेगी तिरे दर पे हवा मेरे बा'द जो भी कहना है वो कह दे दम-ए-रुख़्सत ज़ालिम रह न जाए तिरे होंटों पे गिला मेरे बा'द अब यही सोच के मैं ज़ब्त किए बैठा हूँ क्या किसी आँख से बरसेगी घटा मेरे बा'द शाख़-ए-लर्ज़ीदा से पत्तों के बिछड़ने का समाँ कौन देखेगा तमाशा ये भला मेरे बा'द मेरे तो वहम-ओ-गुमाँ में भी नहीं था ये 'मुनीर' ख़ुद से हो जाएगा वो शख़्स जुदा मेरे बा'द