कौन है दुनिया में मेरा जान-ए-जाँ तेरे बग़ैर हूँ फ़लक के साएबाँ में बे-अमाँ तेरे बग़ैर तू ही मंज़िल-आश्ना था इक तिरे जाने के बाद रास्तों में रह गया हर कारवाँ तेरे बग़ैर दास्ताँ के दरमियाँ फिर ज़िक्र तेरा आ गया किस तरह होती मुकम्मल दास्ताँ तेरे बग़ैर लब पे ताले पड़ गए अल्फ़ाज़ गूँगे हो गए हर्फ़ हर इक हो गया है बे-ज़बाँ तेरे बग़ैर हो गया 'फ़ारूक़' बूढ़ा हिज्र के सदमात से किस तरह रहता जवाँ वो नौजवाँ तेरे बग़ैर