सर-ब-कफ़ चलना पड़ा है क़ातिलों के शहर में दिल की क़ीमत कुछ न थी इन बे-हिसों के शहर में होश-मंदी का लबादा ओढ़ कर आया था मैं और पागल हो गया हूँ पागलों के शहर में सर छुपाने के लिए इक साएबाँ तो चाहिए भीगते कब तक रहोगे बारिशों के शहर में सच की क़ीमत कुछ नहीं है झूट के बाज़ार में अक़्ल की वक़अत कहाँ है सर-फिरों के शहर में कोई भी दर वा नहीं होता यहाँ मेरे लिए मिल न पाएँगी पनाहें बुज़दिलों के शहर में मुझ को भी महँगी बड़ी है इन गली कूचों की सैर दिल गँवा आया हूँ मैं भी गुल-रुख़ों के शहर में बैठ मत जाना कभी 'फ़ारूक़' तुम जी हार के ढूँढना है हल कोई इस मुश्किलों के शहर में