कोई कब भेद दिल का खोलता है बहा जो अश्क वो ख़ुद बोलता है बचाऊँ हुस्न से कैसे मैं दामन मिरा दिल भी तो अक्सर डोलता है हिसार-ए-जिस्म का क़ैदी परिंदा उड़ानों के लिए पर तोलता है तुम्हारे क़ुर्ब का वो प्यारा लम्हा मिरे जीवन में विश क्यों घोलता है बचाए रखना 'राज' आँखों के मोती इन्हें मिट्टी में क्यों तू रोलता है