ख़ाक से थे ख़ाक से ही हो गए आसमाँ को ओढ़ कर हम सो गए ज़िंदगी लिख दी ख़ुदा ने रेत पर हम समुंदर बन के इस को धो गए किस लिए अज्दाद को इल्ज़ाम दें उन से जो भी बन पड़ा वो बो गए जुस्तुजू थी आसमानों की जिन्हें वो ज़मीं की गोद में गुम हो गए कौन पूछे इक मुसाफ़िर को जहाँ कारवाँ के कारवाँ ही खो गए