ख़ालिक़ से इल्तिमास करे इल्तिजा करे कोई तो हो जो हक़ में हमारे दुआ करे वो शम-ए-हक़ जले न भला कैसे हश्र तक फ़ानूस बन के जिस की हिफ़ाज़त हवा करे फ़ुर्क़त का ग़म उठाए जा ज़िंदा-दिली के साथ तौहीन-ए-इश्क़ होगी अगर तू गिला करे दुश्मन से ऐसे कौन भला जीत पाएगा जो दोस्ती के भेस में छुप कर दग़ा करे वो जिस का मेरे क़त्ल की साज़िश में हाथ है इल्ज़ाम उस पे कोई न आए ख़ुदा करे ये दौर-ए-पुर-फ़रेब है इस दौर में 'सलीम' मुमकिन नहीं है कोई किसी से वफ़ा करे