ख़ार-ओ-गुल का फ़ैसला होने को है नज़्म-ए-गुलशन अब नया होने को है ज़ख़्म फिर भरने को आए हैं नदीम कोई ताज़ा हादसा होने को है ख़ैर-मक़्दम की मिरे तय्यारियाँ अब हरम भी मै-कदा होने को है ख़ैरियत गुज़रे बरूज़-ए-एहतिसाब उन का मेरा सामना होने को है आशियाँ से दूर टूटीं बिजलियाँ अब 'निशा' बे-आसरा होने को है