मैं चला हूँ ढूँढता मंज़िलें मुझे आश्ना की तलाश है मिरी इस जबीन-ए-नियाज़ को तिरे नक़्श-ए-पा की तलाश है वो फ़ज़ा-ए-इश्क़ पे है नज़र जो वसीअ' से हो वसीअ-तर अभी इंतिहा का है ज़िक्र क्या अभी इब्तिदा की तलाश है जो निसार पा-ए-हसीं हुआ जो ग़ुबार बन के भी उड़ चुका रह-ए-बे-ख़ुदी में मुझे उसी दिल-ए-मुब्तला की तलाश है सभी रहमतें जो समेट ले जो हुआ न हो किसी और से मुझे उस गुनाह की है जुस्तुजू मुझे उस ख़ता की तलाश है मैं ही सर-ब-सज्दा रहा करूँ मैं तवाफ़-ए-शौक़ किया करूँ जो ख़ुदा न हो किसी और का मुझे उस ख़ुदा की तलाश है अभी मय-कदे से हैं निस्बतें अभी हैं सुकून की काविशें अभी ख़ाम है मिरा सोज़-ए-ग़म मुझे इंतिहा की तलाश है ये बजा कि हुस्न को नाज़ है ये दुरुस्त इश्क़ को फ़ख़्र है जो सरापा ख़ुद हो जला 'निशा' मुझे उस वफ़ा की तलाश है