ख़बर नहीं कि अभी और क्या है क़िस्मत में सँभल गया हूँ जो गिर के रह-ए-मोहब्बत में शिकायत-ए-सितम-ए-नारवा के बा'द न पूछ उन्हें भी देख लिया आलम-ए-नदामत में उमीद तुझ से भी टूटी तो क्या हुआ ऐ दोस्त मिरी तो यूँ ही गुज़रती है यास-ओ-हसरत में चुभा जो पाँव में काँटा तो सैर भूल गया बड़े तपाक से आया था बाग़-ए-उल्फ़त में यहीं पे ख़त्म नहीं सिलसिला जफ़ाओं का अभी तो और सितम सहने हैं मोहब्बत में लबों पे आह ख़लिश दिल में आँख में आँसू किस एहतिमाम से जीना पड़ा मोहब्बत में अब एहतियात से इस गुल की बात कर 'नाज़िम' गए वो दिन कि ज़माना था ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में