किस शग़्ल को अपनाए आख़िर तिरा सौदाई हँसने में भी रुस्वाई रोने में भी रुस्वाई अरबाब-ए-मोहब्बत के क्या क्या न सुने ता'ने रूदाद-ए-दिल-ए-मुज़्तर लब पर जो कभी आई हाँ तेरी तमन्ना को हम दिल से भुला देंगे जीने की कोई सूरत ज़ालिम जो निकल आई इस बात से क्या हासिल ये अहल-ए-सुख़न जानें जिस बात में होती है गहराई न गीराई अब तेरे लिए दुनिया होती है तो हो दुश्मन काँटों से नहीं डरता फूलों का तमन्नाई तुम दैर-ओ-कलीसा ही देखो न हरम 'नाज़िम' ऐसा भी भला क्या है सौदा-ए-जबीं-साई