ख़िदमत-ए-इंसाँ की कुछ तदबीर भी काश हो इस ख़्वाब की ता'बीर भी बे-महाबा हर क़दम मंज़िल से दूर पाँव में हो अह्द की ज़ंजीर भी अज़्मत-ए-रफ़्ता की ख़्वाहिश कर ज़रूर कर उसे पाने की कुछ तदबीर भी हुरमत-ए-तौक़ीर-ए-इंसाँ कर अज़ीज़ छोड़ दे ये नफ़रत-ओ-तहक़ीर भी बाँटिए दुख-दर्द साथी भी हों ख़ुश हो नई दुनिया की फिर ता'मीर भी उस्वा-ए-ख़ैरुल-बशर अपनाइए थामिए इख़्लास की ज़ंजीर भी ऐसे इंसाँ को मिला बाम-ओ-उरूज जिस ने अपनी ज़ात की तस्ख़ीर की