ख़ला की हद को तुम तो पार करते करते थक गए रसूल-ए-पाक एक पल में ला-मकाँ तलक गए तजल्लियों में आप की कुछ ऐसी आब-ओ-ताब थी निगार-ख़ाने में लगे सब आइने दरक गए पहाड़ जैसी ज़िंदगी कटे तो किस तरह कटे निबाहने की बात थी वो दो ही दिन में थक गए अमीर अपने टॉमियों को दे रहे हैं दूध घी ग़रीब ख़ुश्क रोटियों के वास्ते भटक गए पता नहीं कि क्या हुआ था अपनी इस ज़बान को कि उन से गुफ़्तुगू में हम कई दफ़ा अटक गए उन्हीं को मिल रहे हैं आज तमग़ा-ए-बहादुरी ब-वक़्त-ए-जंग जो हमारी ओट में दुबक गए