ख़िज़ाँ-रसीदा ने उल्टी तरफ़ रुजूअ' किया तमाम रंगों ने तेरी तरफ़ रुजूअ' किया ये शाख़-ए-ताज़ा इसी सोच में कटी होगी मिरे गुलाब ने किस की तरफ़ रुजूअ' किया ज़मीन फैल गई सातों आसमानों पर ख़ला-नवर्दों ने कैसी तरफ़ रुजूअ' किया फ़ज़ा-ए-हब्स में सब लोग बौखला गए थे अकेले हम ने ही खिड़की तरफ़ रुजूअ' किया मैं उस को छोड़ के आगे चला गया 'हारिस' तो काएनात ने मेरी तरफ़ रुजूअ' किया