ख़ल्क़ में तेरा हम-जमाल कहाँ ढूँढिए सूरत-ए-मिसाल कहाँ लाइए किस से हिम्मत-ए-ख़ुद-काम कीजिए जुरअत-ए-सवाल कहाँ शौक़-ए-दीदार यक-निगाह दुरुस्त ताब-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल कहाँ कौन पहुँचा तिरी हक़ीक़त को इस क़दर वुसअत-ए-ख़याल कहाँ हर अदा तेरी एक आलम है तू कहाँ आलम-ए-मिसाल कहाँ मेरा ज़ौक़-ए-जुनूँ अगर बे-अस्ल जज़्ब होता तिरा जलाल कहाँ ज़िंदगी सिर्फ़ ग़म हुई 'हिरमाँ' अब किसी ग़म का एहतिमाल कहाँ