किया शबाब ने बर्बाद-ए-रोज़गार मुझे पयाम-ए-मर्ग हुई दा'वत-ए-बहार मुझे अगर कहूँ कि न आए कभी क़रार मुझे अब इस क़दर भी नहीं दिल पे इख़्तियार मुझे नशात-ए-दहर अभी दर्द से बदल जाए मिला है ज़ब्त-ए-मोहब्बत का इख़्तियार मुझे अगर है मा'नी-ए-दीदार ख़ाक हो जाना बना दे अपनी तजल्ली की यादगार मुझे रहेगा अहद-ए-गुज़िश्ता से इक गिला 'हिरमाँ' जहाँ में छोड़ गया कर के सोगवार मुझे