ख़ल्वती-ए-ख़याल को होश में कोई लाए क्यूँ शोला-ए-तूर ही सही हम से नज़र मिलाए क्यूँ हम से कुछ और ही कहा उन से कुछ और कह दिया बाद-ए-सबा ये क्या किया तू ने ये गुल खिलाए क्यूँ क़ैस का हासिल-ए-जुनूँ नाक़ा ओ महमिल ओ हिजाब लैला-ए-नज्द-आश्ना ख़ल्वत-ए-दिल में आए क्यूँ अक़्ल हरीस-ए-ख़ार-ओ-ख़स सूरत-ए-शोला-ए-हवस दौलत-ए-सोज़-ए-जावेदाँ अक़्ल के हाथ आए क्यूँ गर्दिश-ए-मेहर-ओ-माह भी गर्दिश-ए-जाम बन गई सुब्ह न लड़खड़ाए क्यूँ शाम न झूम जाए क्यूँ तालिब-ए-हुजला-ए-बहार दश्त-ए-तलब है ख़ारज़ार वक़्त किसी की राह में मसनद-ए-गुल बिछाए क्यूँ हश्र में हुस्न से 'रविश' शिकवा-ए-रू-ब-रू ग़लत रोज़-ए-अज़ल की बात है आज ही याद आए क्यूँ