सुर्ख़ी-ए-शाम ने यूँ फूल बिखेरे दिल में जैसे चुपके से उतर आए सवेरे दिल में हम तो सदियों से यूँ ही गोश बर-आवाज़ रहे जाने वो कौन है क्या राज़ हैं तेरे दिल में पास शब भर कोई ख़ुर्शीद-सिफ़त रहता है दिन तो तारे से उतर आते हैं मेरे दिल में प्यार की लू से मुनव्वर है शबिस्तान-ए-विसाल आज तो आन मिले शाम सवेरे दिल में हम मुसाफ़िर हैं मोहब्बत की कठिन राहों के थक भी जाते हैं तो करते हैं बसेरे दिल में क्यूँ भटकता है इधर आ के ज़रा सुस्ता ले इस तरफ़ धूप है बादल है घनेरे दिल में अपना सरमाया-ए-फ़न फिर भी सलामत ही रहा कितनी ही बार 'जमील' आए लुटेरे दिल में