ख़ून-ए-जिगर से तर हुआ सहरा-ओ-दश्त-ओ-गुल्सिताँ महशर बपा है जा-ब-जा कर्ब-ओ-बला ता आसमान इस वादी-ए-आशुफ़्ता की है मुख़्तसर सी दास्तान महव-ए-फ़ुग़ाँ हर इक ज़बाँ आतिश-ज़दा हर इक मकान दस्त-ए-क़ज़ा में कोहकन तस्वीर न अब के तराश मुम्ताज़ संग-ओ-ख़िश्त पर क्यों नक़्श-ए-क़ल्ब-ए-ना-तवान दाम-ए-सुख़न में आ गई जब भी ज़बान-ए-ना-शकेब तब तब तमन्ना-ए-रिहाई का मिटा नाम-ओ-निशान इंसाँ-नुमा इंसाँ कहाँ है दिल-शिकन इंसान-ए-ख़ाम लुत्फ़-ओ-करम हासिल नहीं हर्फ़-ए-शिकायत बर-ज़बान 'अमजद' ये मंज़र देख कर रोएँ ज़ि-बस बाद-ए-बहार कि जल रहे हैं आतिश-ए-गुल से चमन के पासबान