तू रहे ये रुत रहे ये दौर-ए-पैमाना रहे ता-क़यामत साक़िया आबाद मय-ख़ाना रहे इक तरफ़ जलता रहा परवाना शम-ए-बज़्म पर इक तरफ़ हम शम्अ-रुख़ पर बन के परवाना रहे शोर बुलबुल का चमन में है तो क्या ऐ हम-नवा हम तो दीवाने उड़ाते ख़ाक-ए-वीराना रहे क्या ज़रा सी बात का तू ने बतंगड़ कर दिया तुझ से मेरे यार किस का कब को याराना रहे हम से दीवाने में शिकवे की कहाँ ताक़त भला तोहमतें हम पर लगा कर आप फ़रज़ाना रहे मेरी उल्फ़त में नहीं कुछ फ़र्क़ तेरी बात से मेरे लब पर तेरे ग़म्ज़े का ही शुक्राना रहे कीजिए 'दीवान' रौशन इस तरह से नाम को हश्र तक तो कम से कम उल्फ़त का अफ़्साना रहे