ख़ुदा करीम है इतना करम ही फ़रमाए मैं उस को भूलना चाहूँ वो मुझ को याद आए फ़ज़ा में नूर हवाओं में उस की ख़ुशबू है ठहर ऐ वक़्त कि जान-ए-बहार आ जाए वफ़ा ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत की ये अमानत है ग़म-ए-हयात की सुर्ख़ी जबीं पे लहराए तुम्हारी चाह तरब-ख़ेज़ वादियों का सफ़र हमारे साथ हैं महरूमियों के सरमाए गिरा के बर्क़ जलाया है आशियाँ दिल का तिरे लबों पे तबस्सुम कुछ ऐसे लहराए कहाँ मिसाल है रौशन जमाल की 'नश्तर' बदन को छू के जिसे चाँदनी भी शरमाए