ख़राबे में मोहब्बत का गुज़र है कि नहीं ख़ैर दुनिया में ब-अंदाज़ा-ए-शर है कि नहीं देखिए आँख मिरी आज भी तर है कि नहीं दिल-ए-महज़ूँ पे मोहब्बत का असर है कि नहीं मंज़िलें और भी हैं मंज़िल-ए-उल्फ़त के सिवा मेरी आशुफ़्ता-मिज़ाजी को ख़बर है कि नहीं अब तो अरबाब-ए-जुनूँ के लिए सहरा ही नहीं वज्ह-ए-तस्कीन तिरी राह-गुज़र है कि नहीं निगह-ए-नाज़ के फ़ित्नों से ख़याल आता है कभी पैग़ाम-रसाँ उन की नज़र है कि नहीं बा-हमा जौर-ओ-जफ़ा ज़िंदा है 'मंज़र' अब तक अब भी तू क़ाइल-ए-ए'जाज़-ए-बशर है कि नहीं