पाबंदी-ए-हिसार से आगे निकल गए नफ़रत की ज़िद में प्यार से आगे निकल गए इस दर्जा इख़्तियार उसे ख़ुद पे दे दिया हम उस के इख़्तियार से आगे निकल गए अपने क़दम को अपनी ही जानिब बढ़ा लिया दुनिया की हर क़तार से आगे निकल गए आवाज़ दी गई हमें ताख़ीर से बहुत इतनी कि हम पुकार से आगे निकल गए मुड़ कर भी देखने की इजाज़त नहीं मिली हम भी रह-ए-ग़ुबार से आगे निकल गए जो लोग कार-ए-इश्क़ में मसरूफ़ हो गए वो फ़िक्र-ए-रोज़गार से आगे निकल गए जीना मुहाल शहर में इतना हुआ कि हम मरने के इंतिज़ार से आगे निकल गए