रब्त दिल से कोई बनाओ तुम इश्क़ न रंज ही निभाओ तुम इख़्तिलाफ़ात बा-सलीक़ा हो ख़ुद गिरो न हमें गिराओ तुम फागुनी धूप सी तिरी सूरत मास्क से न इसे छुपाओ तुम दिल मिरे वो हँसी छलावा है ख़्वाह-मख़ाह बात न बढ़ाओ तुम उम्र भर दौड़ती मशीनें हैं आदमी है कहाँ दिखाओ तुम गाड़ियाँ ऐश नौकरी पैसा दोस्ती में इन्हें न लाओ तुम बाद तेरे चले तिरी हो कर वो नई दास्ताँ सुनाओ तुम गाँव माँ सा यही पुकारे है थक गए हो तो लौट आओ तुम