ख़ुदा जाने ज़बाँ पर आज किस काफ़िर का नाम आया मोहब्बत झूम झूम उट्ठी मशिय्यत का सलाम आया अदब ऐ आरज़ू-ए-शौक़ वक़्त-ए-एहतिराम आया जुनूँ की मंज़िलें तय हो चुकीं दिल का मक़ाम आया तरीक़-ए-इश्क़ में अक्सर इक ऐसा भी मक़ाम आया क़दम उठने नहीं पाए कि मंज़िल का सलाम आया मज़े के साथ गुज़रा हूँ मोहब्बत की मनाज़िल से कभी अपना मक़ाम आया कभी उन का मक़ाम आया वो लम्हा भी किसी की अंजुमन में क्या क़यामत था निगाहों की ज़बाँ में दिल को जब दिल का पयाम आया यकायक और दिल की धड़कनों का तेज़ हो जाना सँभल ऐ इश्क़ फिर शायद कोई नाज़ुक मक़ाम आया शगुफ़्त-ए-दिल ही के दम तक थी रंग-ओ-बू की दुनिया भी न फिर कोई कली चटकी न फिर कोई पयाम आया बदल कर रह गईं ऐ 'आरज़ू' क़िस्मत की तहरीरें ये किस के दस्त-ए-नाज़ुक से मिरे हाथों में जाम आया