ख़ुदा को आज़माना चाहता हूँ मैं ये दुनिया जलाना चाहता हूँ किसी शाइ'र से उस की ज़िंदगी के मैं सारे ग़म चुराना चाहता हूँ मैं रूह-ए-'जौन' को जन्नत में जा कर गले कस कर लगाना चाहता हूँ तिरी छत पर टँगे सब पैरहन से तिरी ख़ुशबू चुराना चाहता हूँ फ़क़त मदहोश हो कर क्या मज़ा है मैं पी कर लड़खड़ाना चाहता हूँ घड़ी के काँटों को उल्टा घुमा कर समय को मैं बचाना चाहता हूँ शजर को काट कर मैं ख़ूब रोया मैं अपना घर बनाना चाहता हूँ नए हाथों में मैं पुस्तक थमा कर सभी सरहद मिटाना चाहता हूँ उसे कह कर की अब भी है मोहब्बत मैं उस का दिल दुखाना चाहता हूँ किसी मा'सूम बच्चे की तरह मैं ख़ुदा को सब बताना चाहता हूँ