ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की

ख़ुदा-मालूम किस की चाँद से तस्वीर मिट्टी की
जो गोरिस्ताँ में हसरत है गरेबाँ-गीर मिट्टी की

नवाज़ी सरफ़राज़ी रूह ने तस्वीर मिट्टी की
ख़ुशा-ताले ख़ुशा-क़िस्मत ख़ुशा-तक़दीर मिट्टी की

हक़ीक़त में अजाइब-शोबदा-पर्दाज़-ए-दुनिया है
कि जो इंसान की सूरत था वो है तस्वीर मिट्टी की

जिसे रूया में देखा था मिलाया ख़ाक में उस ने
मुक़द्दर ने हमारे ख़्वाब की ताबीर मिट्टी की

मज़ारों में दिखा कर उस्तुख़्वाँ हसरत ये कहती है
कोई पुरसाँ नहीं उन का ये है तौक़ीर मिट्टी की

ये नाहक़ बरहमी है ख़ाकसारों के ग़ुबारों से
ख़राबी आँधियों ने की है बे-तक़सीर मिट्टी की

वो वहशी था कि मर के भी न मैदान-ए-जुनूँ छूटा
मिरी मय्यत रही सहरा में दामन-गीर मिट्टी की

न ली तुर्बत को गुलशन में जगह ली भी तो सहरा में
रियाज़त सब हमारी तू ने ऐ तक़दीर मिट्टी की

मिरे सय्याद ने जिस जिस जगह तूदा बनाया था
वहाँ जा जा के बू लेते फिरे नख़चीर मिट्टी की

अज़ल के रोज़ से ग़श हैं जो इंसाँ ख़ाकसारी पर
सरिश्त उन की है मिट्टी से ये है तासीर मिट्टी की

ये आलम हो गया है जमते जमते गर्द-ए-सहराई
कि मजनूँ पूछता है क्या ये है ज़ंजीर मिट्टी की

हमारे ख़ाक के तूदे को नाबूद आ के कर देंगे
निशानी भी न छोड़ेंगे तुम्हारे तीर मिट्टी की

इजाज़त से तुम्हारी गुफ़्तुगू की संग-रेज़ो ने
बराबर सुनने वालों ने सुनी तक़रीर मिट्टी की

गली में यार की ऐसे हुए हो गर्द-आलूदा
कि बिल्कुल हो गए हो ऐ 'शरफ़' तस्वीर मिट्टी की


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