न दे तबीब दवा दर्द में कमी के लिए कि दिल का रोग ज़रूरी है ज़िंदगी के लिए रह-ए-हयात में ठोकर न अब लगेगी तुम्हें कि ज़ख़्म-ए-दिल हैं मिरे सब की रौशनी के लिए थी उस के जिस्म पे बोसीदा बे-कसी की रिदा मगर वो माँग रहा था दुआ सभी के लिए मैं मानता हूँ कि निकला है सच की खोज में वो मगर ये काम नहीं सहल हर किसी के लिए मिरी ज़बान पे कब तक लगाएगा पहरा ज़मीर बेच रहा है जो बरतरी के लिए तलाश करता है दरिया तू रेग-ज़ारों में ये ख़ुद-कुशी का है अंदाज़ तिश्नगी के लिए लगाते ख़ूब हो मिसरा मगर 'अलीम' सुनो अरूज़ जानना लाज़िम है शाइरी के लिए