ख़ुमार-ख़ाना-ए-लफ़्ज़-ओ-बयान तक ही है कि चाहतों का नशा इम्तिहान तक ही है फिर इस के बा'द बिखरना है मुझ को हर लम्हा कि ये सुकून फ़क़त तेरे ध्यान तक ही है बुलंदियों के सफ़र से न इस क़दर घबरा ये ख़ौफ़ सा जो है पहली उड़ान तक ही है निकल भी जाओ किनारे की सम्त ऐसे में हवा का ज़ोर अभी बादबान तक ही है ख़ुदा हुए तो वफ़ाओं का बाँकपन भी गया खिंचाव तीर का गोया कमान तक ही है शिकस्तगी पे मिरी देख इतना तंज़ न कर ये उखड़ा उखड़ा तनफ़्फ़ुस तकान तक ही है 'रऊफ़' दूर तलक रास्ते में कोई नहीं कि ये तज़ाद-ए-सदा तेरे कान तक ही है