ख़ुश बहुत है कि ख़ुश-गुमाँ भी तो है रब्त दोनों के दरमियाँ भी तो है सर से पा तक वो आतिश-ए-ख़ामोश दीदा-ए-नम धुआँ धुआँ भी तो है ख़ेमा जलने का राज़-ए-सर-बस्ता कोई दर-पर्दा मेहरबाँ भी तो है शाख़-सारों पे ए'तिमाद भी कम चार तिनकों का आशियाँ भी तो है तेज़ चलने पे इख़्तियार सही हम-सफ़र कोई ना-तवाँ भी तो है है क़बीले में इंतिशार बहुत सर-फिरों का ये कारवाँ भी तो है याँ कि फ़र्शी सलाम है ममनूअ' ये फ़क़ीरों का आस्ताँ भी तो है कब कशिश थी बयाँ में यूँ 'अफ़ज़ल' ये शब-ए-ग़म की दास्ताँ भी तो है