ख़ुशी से शौक़ से बार-ए-अलम उठाना है मुसीबतों में भी रह रह के मुस्कुराना है मुझे तो साहिल-ए-मक़्सूद की तमन्ना है सफ़ीना हिज्र-ए-हवादिस से ले के जाना है तुम अपने तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल को भी बदल डालो तुम्हें ख़बर नहीं बदला हुआ ज़माना है मुझे तो जज़्ब-ए-जिगर से या आह-ए-पैहम से किसी तरह से तसव्वुर में उन को लाना है नहीं है बाद-ए-मुख़ालिफ़ का ख़ौफ़ ऐ मंज़र चराग़ तुंद हवाओं में भी जलाना है