ख़ुश-रंग आसमान उड़ा ले गई हवा ख़ुशबू का साएबान उड़ा ले गई हवा काँटे उलझ के दामन-ए-हस्ती से रह गए फूलों की दास्तान उड़ा ले गई हवा आँखों में अब चमकते दर-ओ-बाम हैं कहाँ ख़्वाबों का वो मकान उड़ा ले गई हवा दिल के तअ'ल्लुक़ात की ख़ुशबू कहीं नहीं मरबूत ख़ानदान उड़ा ले गई हवा बे-सम्त ज़िंदगी मिरी बे-सम्त ही रही मंज़िल का हर निशान उड़ा ले गई हवा थी जिस के दम से जल्वा-ए-तहज़ीब-ए-नौ यहाँ कब का वो ख़ाक-दान उड़ा ले गई हवा क़िस्मत से आ गए थे हम अहल-ए-सितम के हाथ वो तीर वो कमान उड़ा ले गई हवा तूफ़ाँ से खेलती हुई कश्ती गुज़र गई हर चंद बादबान उड़ा ले गई हवा ज़ाहिर हुआ जो मतला-ए-दिल पर यक़ीं का नूर पल भर में हर गुमान उड़ा ले गई हवा बदला था जिन से 'नाज़' मिरा लहजा-ए-ग़ज़ल वो तर्ज़ वो बयान उड़ा ले गई हवा