तीरगी में सुब्ह की तनवीर बन जाएँगे हम ख़्वाब तुम देखोगे और ताबीर बन जाएँगे हम अब के ये सोचा है गर आज़ाद तुम ने कर दिया ख़ुद ही अपने पाँव की ज़ंजीर बन जाएँगे हम आँसुओं से लिख रहे हैं बेबसी की दास्ताँ लग रहा है दर्द की तस्वीर बन जाएँगे हम लिख न पाए जो किसी की नीम-बाज़ आँखों का राज़ वो ये व'अदा कर रहे हैं 'मीर' बन जाएँगे हम गर यूँ ही बढ़ता रहा दिन रात शुग़्ल-ए-मय-कशी एक दिन इस मय-कदे के पीर बन जाएँगे हम उस ने भी औरों के जैसा ही किया हम से सुलूक जो ये कहता था तिरी तक़दीर बन जाएँगे हम