ख़्वाब और हक़ीक़त की तस्वीर नज़र आई तदबीर इनाँ-गीर-ए-तक़दीर नज़र आई आफ़ात-ए-मुसलसल में इक रब्त नज़र आया हालात-ए-दिगर-गूँ में ज़ंजीर नज़र आई जो अपने नक़ाइस थे वो हुस्न नज़र आए औरों में जो ख़ूबी थी तक़्सीर नज़र आई राज़ी-ब-रज़ा हो कर देखा तो मुसीबत भी गुल-हा-ए-शगुफ़्ता की ज़ंजीर नज़र आई यादों के झरोके से देखा तो मुझे 'तालिब' अय्याम-ए-बहाराँ की तस्वीर नज़र आई