ख़्वाब तेरे हैं ये ख़्वाबों का नगर तेरा है ज़िक्र-ए-अन्फ़ास में हर शाम-ओ-सहर तेरा है जल्वा हर-गाम सर-ए-राह गुज़र तेरा है आँख मेरी है मगर हुस्न-ए-नज़र तेरा है बे-इरादा जो उठे हैं वो क़दम मेरे हैं बे-महाबा जो गुज़रता है सफ़र तेरा है मेरी बे-रब्त दुआओं को रसाई दे दे लफ़्ज़ मेरे हैं मगर बाब-ए-असर तेरा है ज़िंदगी कहता हूँ मैं जिस को ज़बाँ में अपनी वो सफ़र मेरा सही इज़्न-ए-सफ़र तेरा है सरहदें हैं मिरी नज़रों की ये मेहर-ओ-महताब और उन से भी जो आगे है वो दर तेरा है नस्ल-ओ-मज़हब की कोई क़ैद नहीं है 'गौहर' ज़िक्र हर लब पे ब-अल्फ़ाज़-ए-दिगर तेरा है