ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम बुल-हवस खाया करें इशरत-ए-फ़ानी की क़सम इक ग़म-अंगेज़ हक़ीक़त है हमारी हस्ती क़िस्सा-ख़्वाँ तेरी ग़म-अंगेज़ कहानी की क़सम दिल की गहराइयों में आग दबी रखता हूँ चश्म-ए-गिर्यां से बरसते हुए पानी की क़सम जब से आई है ख़ुदा रक्खे जवानी 'अख़्तर' हम हर इक बात पर खाते हैं जवानी की क़सम