ख़्वाहिश-ओ-ख़ाब के आगे भी कहीं जाना है इश्क़ के बाब से आगे भी कहीं जाना है क्यूँ नहीं छोड़ती आख़िर मुझे दुनिया-दारी माल-ओ-अस्बाब से आगे भी कहीं जाना है देने वाले तू मुझे नींद न दे ख़्वाब तो दे मुझ को महताब से आगे भी कहीं जाना है जाने क्यूँ रोक रही है मुझे अश्कों की क़तार चश्म-ए-पुर-आब से आगे भी कहीं जाना है क्यूँ लिपटता है मिरे साथ ये दरिया आख़िर मुझ को गिर्दाब से आगे भी कहीं जाना है