ख़याल दौड़ा निगाह उट्ठी क़लम ने लिक्खा ज़बान बोली मगर वही दिल की उलझनें हैं किसी ने इस की गिरह न खोली लताफ़तों के नज़ाकतों के 'अजीब मज़मून हैं चमन में सबा ने झटका है अपना दामन मसक गई है कली की चोली ख़याल शा'इर का है निराला ये कह गया एक कहने वाला शबाब के साथ यूँ है रिंदी कि जैसे फागुन के साथ होली कहो ये रिंदान-ए-एशिया से कि बज़्म-ए-इशरत के ठाठ बदले उड़न-खटोला है अब मिसों का गई परीजान की वो डोली