सनम सनम न पुकारे ख़ुदा ख़ुदा न करे वो चोट खाई है दिल ने कि अब दुआ न करे उधर न देखिए वर्ना ये शहर-ए-ना-पुरसाँ तुम्हारी एक ज़रा बे-रुख़ी से क्या न करे मैं अपने देस में भी अजनबी सा लगता हूँ कोई ख़ुलूस न बरते कोई वफ़ा न करे बस इक ख़राब-ए-तमन्ना हमीं नज़र आए सुलूक आप करें जो वही ज़माना करे ग़रीब-ए-शहर की ये ना-रसाइयाँ तौबा तुम्हारे दर पे भी आया मगर सदा न करे अब ऐसे ज़ूद-फ़रामोश से भी क्या कहना कभी जो बात बनाए कभी बहाना करे किरन असीर महक मुज़्महिल है अब 'सरमद' मैं ऐसे दौर में भी चुप रहूँ ख़ुदा न करे